मुसलमान फ़िरक़ों और मतों में क्यों बँटे हैं?


 



1. मुसलमानों को चाहिए कि वे संगठित हों यह बात सही है कि आज मुसलमान परस्पर बँटे हुए हैं। दु: की बात यह है कि यह सरासर गैर इस्लामी चीज़ है। इस्लाम अपने अनुयायियों के बीच एकता चाहता है। कुरआन में है

 "और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड लो और विभेद में पड़ो।''(कुरआन, 3:103) 

अल्लाह की रस्सी जिसका इस आयत में उल्लेख किया गया है, क्या है? वास्तव में वह रस्सी पवित्र क़ुरआन है। जिसे सभी मुसलमानों को मिलकर मजबूती के साथ पकड़े रहना चाहिए। कुरआन की इस आयत में इस बात पर दोहरा बल दिया गया है। एक ओर कहा गया है कि अल्लाह की रस्सी को सब मिलकर मजबूती के साथ पकड़ लो और दूसरी ओर कहा गया कि विभेद में पड़ो और टुकड़ों में ने बँटो। | पवित्र कुरआन में है

''आज्ञापालन करो ख़ुदा का और आज्ञापालन करो उसके पैग़म्बर का।''

(कुरआन, 4:59) 

सारे मुसलमानों को कुरआन और सहीह हदीसों का अनुपालन करना चाहिए तथा परस्पर विभेद में नहीं पड़ना चाहिए।



2. इस्लाम में गिरोहबंदी और फ़िरक़ाबंदी मना है। 



पवित्र कुरआन में है

"जिन लोगों ने अपने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और स्वयं गिरोहों में बँट गए, तुम्हारा उनसे कोई संबंध नहीं। उनका मामला तो बस अल्लाह के हवाले है। फिर वह उन्हें बता देगा जो वे किया करते थे।'' (कुरआन, 6:159)

 कुरआन की इस आयत में खुदा कहता है कि लोगों को चाहिए कि वे उन लोगों से अपने को अलग रखे जिन्होंने धर्म मे विभेद पैदा किया और उसे गिरोह में बाँट दिया। मगर जब कोई व्यक्ति किसी मुसलमान से पूछता है कि तुम कौन हो तो आमतौर पर उसका उत्तर होता है कि मैं सुन्नी हूँ या शिया हूँ। कुछ लोग अपने आपको हनफ़ी या शाफ़ई या मालिकी या हंबली कहते हैं। इसी प्रकार कुछ लोग कहते हैं कि मैं देवबंदी हूँ या बरेलवी हूँ।

 3. हमारे पैग़म्बर (हज़रत मुहम्मद सल्ल.) मुस्लिम थे इसी प्रकार मुसलमानों से अगर पूछा जाए कि खुद हमारे प्यारे पैग़म्बर क्या थे? वे हनफ़ी थे या शाफ़ई, हंबली थे या मालिकी, तो वे जवाब देंगे कि वे अन्य तमाम पैग़म्बरों की तरह एक मुसलमान थे और ख़ुदा के पैग़म्बर थे।

पवित्र कुरआन की सूरा-3 आले-इमरान आयत 52 में कहा गया है कि हज़रत ईसा (अलै.) मुस्लिम थे। इसी प्रकार इसी सूरा की आयत 67 में हज़रत इब्राहीम (अलै.) के बारे में बताया गया है वे यहूदी थे और ईसाई बल्कि मुस्लिम थे।

 4. कुरआन कहता है कि तुम स्वयं को मुस्लिम कहो। 

() अगर कोई व्यक्ति किसी मुसलमान से पूछता है कि तुम क्या हो? तो उसे जवाब में कहना चाहिए कि मैं मुस्लिम हूँ कि हनफ़ी या शाफ़ई। पवित्र कुरआन में है

" और उस व्यक्ति से बात में अच्छा कौन हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए और अच्छे कर्म करे और कहे कि निस्संदेह में मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ।'' (कुरआन, 41:33) 

कुरआन कहता है कि तुम कहो कि मैं उन लोगों में से हूँ जो अल्लाह के आगे सिर झुकाने वाले अर्थात् मुस्लिम हैं।

() खुदा के पैग़म्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने गैर-मुस्लिम बादशाहों को पत्र लिखवाए जिनमें उन्होंने उनको इस्लाम की दावत दी। इन पत्रों में उन्होंने पवित्र कुरआन की सूरा-3 आले-इमरान की आयत-64 का उल्लेख किया जिसका तर्जुमा इस प्रकार है

".....गवाह रहो हम तो मुस्लिम (खुदा के आज्ञाकारी) हैं। 

5. इस्लाम के तमाम विद्वानों और धर्मशास्त्रियों का आदर हमें चारों इमाम-इमाम अबू हनीफा, इमाम शाफ़ई, इमाम हंबल, इमाम मालिक समेत सभी इमामों का आदर करना चाहिए और उनके साथ अक़ीदत रखनी चाहिए। वे इस्लाम के महान विद्वान थे। खुदा उन्हें उनकी दीनी सेवाओं और उनकी मेहनतों का बड़ा बदला देगा। किसी को भी ऐसे व्यक्ति पर एतराज़ नहीं करना चाहिए जो इमाम अबू हनीफ़ा या इमाम शाफ़ई में से किसी के विचारों से सहमत हो। लेकिन यदि सवाल किया जाए तो इसका उत्तर यही देना चाहिए कि मैं मुस्लिम हूँ। 

6. कुछ लोग विभेद और गिरोहबंदी के सिलसिले में हदीस संग्रह सुनन अबू दाऊद की हदीस नं. 4579 को प्रमाणस्वरूप पेश कर सकते हैं, जिसमें पैग़म्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया है कि मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में बंट जाएगी। इस हदीस में उम्मत के 73 फ़िरक़ों में बँट जाने की बात जरूर कही गई है लेकिन यह नहीं कहा गया है कि मुसलमानों को अपने आपको 73 फ़िरक़ों में बाँट लेना चाहिए। पवित्र क़ुरआन का आदेश है कि हमें फ़िरकों और गिरोहों में नहीं बँटना चाहिए। जो लोग कुरआन ओर सहीह हदीसों की शिक्षाओं को सिर आँखों से लगाते और उनकी पैरवी करते और फ़िरक़ा बंदी में नहीं पड़ते वह सत्य मार्ग पर हैं।

मुसलमानो में आज कईं गिरोह हैं जो प्राथमीक रूप से कुरआन और हदीस पर होने का दावा करते है 



यह बात सच है की मुसलमानो कई गिरोह हैं जीनका आचरण बिल्कुल अलग अलग हैं फिर भी यह सभी कुरआन पर और मुहम्मद(.) के रास्ते पर होने का  दावा करते हैं. कुरआन और हदीस मे इस समस्या का समाधान दिया गया है.

"और जो सच्ची राह वाजेह होने के बाद रसूल(मुहम्मद .) की मुखालफत करेगा और मुसलमानो के रास्ते के सिवाए खोज करेगा, हम उसे उसी ओर जिस ओर वह फिरता हो फेर देंगे, फिर हम उसे जहन्न मे झोंक देंगे और वह बहुत बुरी जगह है. "(कुरआन, सुरह 4, 115)

अगर वह तुम जैसा इमान लाए तो हिदायत पाएंगे, और अगर मुँह मोडे तो खिलाफ मे हैं. ( कुरआन, सुरह 2,  137)

इस आयत तुम जैसा का अर्थ मुहम्मद(.) और उनके साथी (सहाबा) हैं. इस आयत स्पष्ट रूप से कह दिया है की कोई मनुष्य इन मुहम्मद(.) के सहाबा की तरह इमान लाता है तो माना जाएगा, अर्थात सहाबा इमान की कसौटी हैं कोई कुरआन हदीस पर होने का दावा करता है तो उसे कुरआन हदीस को वैसा ही   अर्थ लेना पडेगा  जैसा मुहम्मद(.) और उनके साहबा ने लिया है.



"और जो मुहाजीर है(मक्का से मदिना आए हुए लोगऔर अंसार(मदिना के मुलनिवासी) पहले हैं और जीतने लोग बगैर कीसी गर्ज के उनके पैरोकार हैं अल्लाह उन सभी से खुश हुआ और वे सब अल्लाह से खुश हुए"

 (कुरआन, सुरह 9, 100) 

यहाँ मुहाजीर और अंसार दोनो से संबोधीत मुहम्मद (.) के साथी (सहाबा) है. उपरोक्त आयतो मे मुसलमानो को ये आदेश दिया गया है की कुरआन, हदीस को समझने मे मुहम्मद(.) और उनके सहाबा का अनुकरण किया जाए.

तिरमिज़ी हदीस नं. 171 के अनुसार खुदा के पैग़म्बर (सल्ल.) ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में बँट जाएगी उनमें से सिवाय एक के हर फ़िरका नरक में जाएगा। सहाबा (रजि.)ने सवाल किया कि वह निजात पाने वाला फ़िरक़ा और जमाअत कौनसी होगी। नबी (सल्ल.) ने जवाब दिया कि जिसका संबंध मुझसे और मेरे साहाबासे(रजि.) हैं।

साहबा और उनके बाद आनेवाली दो वंशोकी प्रशंसा हदिसो मे भी की गयी है। मेरे जमाने के लोग सबसे अच्छे हैं, और उनके बाद उनके मार्ग पर चलने, उसके बाद उनका अनुकरण करऩेवाले (सही बुखारी २६५२, मुस्लीम २५३३)

तिरमीजी की हदीस नं. १७१ के नुसार मुहम्मद (.)  ने कहा मेरी उम्मत ७३ गिरोहो विभाजीत हो जाएगी, उनमेसे सिवाए एक के बाकी सभी गिरोह नर्क मे जाएंगी, सहाबा ने प्रश्न कीया कीस्वर्ग मे जानेवाला वह जमात  कौनसी होगी, तो नबी ने कहा वोह मेरे और मेरे साहबासे संबंध रखते होंगे.  

कयामत के दिन तक आने वाले अनुयायो के लिए हदीसोमे एक कसौटी खुद मुहम्मद() ने दी है, इस कसौटी के अनुसार स्वर्ग मे जाने वाला, नर्क से मुक्तीपाने वाला गिरोह मुहम्मद(.) और उनके साहाबा के धर्म पर होगा मतलब अगर कोई बात मुहम्मद(.) और उनके साहाबा के नजदीक इस्लाम नही थी तो इस्लाम नही हो सकती. इस्लाम की इस पिढीको सलफ(अर्थ पुरखे) कहा जाता है. कुरआन  उनके सामने, उनकी भाषा मे मुहम्मद(.) पर अवतरीत हुवा, और कुरआन की हर आयत का पसमंजर और मुहम्मद (.) की हदीसो के बारेमे सबसे ज्यादा जानकारी इन्ही लोगो थी, इस्लाम के इस सलफ के  मार्ग पर चलने वाले गिरोह को अहलुसुन्नावल जमात, अहलूल हदीस, सलफी  और अहले हदीस भी कहा जाता है. भारत मे इसे अहले हदीस कहा जाता है.

पवित्र कुरआन की कई आयतों में मुसलमानों को आदेश दिया गया है कि वह अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल.) का आज्ञापालन करें। एक सच्चे मुसलमान को केवल क़ुरआन और सहीह हदीसों का पालन करना चाहीए और कुरआन हदीस को वैसा ही  अर्थ लेना चाहीए  जैसा मुहम्मद(.) और उनके साहबा लीया।एक मुसलमान किसी इमाम या आलिम के कथनों से, जो कुरआन और हदीस के अनुसार हो सहमत तो हो सकता है और होना चाहिए लेकिन अगर वे क़ुरआन और हदीस के अनुसार हो तो यह देखे बगैर कि संबंधित इमाम या आलिम कितना बड़ा है, उनका कोई महत्व मूल्य नहीं है। अगर तमाम मुसलमान क़ुरआन को समझकर, सहीह हदीसों की रोशनी में पढ़ें तो इंशाअल्लाह सभी मतभेद स्वंय समाप्त हो जाएँगे और हम एक संगठित उम्मत के सही ढाँचे में ढल जाएँगे।


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